उसके दर्शनार्थ हेतु
निश्चित एवं
अनिश्चित समय तक
कुर्सी पाने हेतु
उनको अपना धन
धर्म ईमान
नैतिकता
सत्य एकता
बंधुत्व ,मित्रता
सर्वश्व का त्याग
पाखंद्दता एवं
नाटकीयता
का लबादा ओड़ना पड़ता है ,
क्षण भर सोचिये
जो अपना धन
धर्म और ईमान
नेतिकता ,एकता एवं
मित्रता एवं सर्वस्व को
स्वाहा करके
कुर्सी पायेगा
भला सब कुछ
पुन; पाने हेतु
क्या देश की अस्मत
एकता ,अखण्डता का
एवं संस्क्रती को
कभी बचा पायेगा
Sunday, January 4, 2009
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