Saturday, September 26, 2009

महंगाई की मार से त्रस्त भारत का लोकतंत्र

अभी तक देश में चुनाव हुए बामुश्किल १०० दिन ही बीते होंगे परन्तु महंगाई ने अपना मक्कड़ जाल इस प्रकार फेला दिया है की कोई भी वस्तु अपने पहले के दामों से दुगुने दामों पर भी मुश्किल से मिल पा रही है और उसको भी वाही लोग ले पा रहे हैं जो की मालदार हैं यानि के मध्यम दर्जे वालों के बसका भी खरीद पाना मील का पत्थर हो रहा है फ़िर निर्धन तो बेचारा रात को भूखा ही सोयेगा और यदि रोटी खा भी लेगा तो नमक से ज्यादा उसको कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि आज आलू किम चटनी भी दस रूपये से कम में नही बनती और सब्जी का तो मतलब ही नहीं क्योंकिम चार रूपये किलो वाला आलू अब चालीस रूपये किलो बिक रहा है ,और दस रूपये वाला गुड चालीस रूपये किलो मिल रहा है तो भला मजदूर आदमी किस प्रकार से खाना खायेगा क्योंकि दस रूपये किलो का आता भी बीस रूपये से कम नहीं है चीनी भी चालीस रूपये किलो से कम नहीं है और उसकी तनखा में कोई इजाफा नहीं हुआ
इसके बावजूद भी सरकार कुछ नहीं कर रही और सरकार भी क्या करे ,ये तो सब प्रभु की किरपा है

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