Thursday, March 4, 2010
क्या यही भारत का लोकतंत्र है
सम्पूर्ण दुनिया में रिसेसन चल रहा है और कोई भी देश उससे अछूता नहीं और भारत भी अछूता नहीं ,काम धाम बंद होने की कगार प़र है व्यापारी गरीब मजदूर ,किसान सभी त्राहि त्राहि कर रह है मंदी की मार ,महंगाई की मार से प्रत्येक व्यक्ति दुखी ,यदि थोड़ा बहुत न्सुखी है भी तो वो है सरकारी आदमी या नेता और राजनेता ,इन लोगो ने अपनी तन्खाये स्वयम ही इतनी बढ़ा ली है की उनको कहीं प़र भी मंदी या महंगाई या रिसेसन नजर नहीं आ रहा है मर तो रहा है मजदूर आदमी जिसको थोड़ी सी तनखा भी समय प़र नहीं मिल पा रही क्योंकि वो सब तो बेचारे छोटी मोटी नौकरी कही दुकानों या फेक्ट्री आदि में करते हैं और मंदी की वजह से उनका प्रोडक्ट ही नहीं बिक रहा तो पैसा कहाँ से आये और जब पैसा नहीं तो तो तनखा कहाँ से ,ऊपर से आता आलू ,दाल प्याज इतने तेज की अच्छे से अच्छा आदमी भी खाना खाने में १०० बार सोच रहा है प़र नेता हैं की संसद में बैठकर १० रूपये की प्लेट में मुर्ग मुसल्लम भी ,इस कारण उनके दिमांग तो बैठे बैठे ही तेज चलेंगे ,वित्त मंत्री जी ने बजट में एक्साइज २%बढाकर चारो और महंगाई का बिगुल बजा दिया तो तेल के रेट इतने बदा दिए की उनके सपोर्टर दलों के गले से ही नहीं उतर रहे और वो भी विपक्षियों के साथ मिल गए ज़रा सोचो ,पानी के रेट ,बिजली के रेट ,हाउस टेक्स ,फोन के बिल ,बच्चों की फीस ,इन सबको इतना बदा दिया है की आदमी ये सब कहाँ से भरे ,और ये सब जनता को इतना दुखी कर रहे हैं वसूली के नाम प़र की रोजाना २से ४ व्यक्ति आत्महत्या जैसा घिनोना कार्य कर रहे और मजे की बात ये है की ये सब कार्य समय प़र ही करने है वरना तो बस खैर नहीं ,जब की दुसरे देश जहा भी ऐसा पिरेड चल रहा सभी देशों में मुफ्त तक में खाना पानी मोटर गाडी ,यानी के सारी मूलभूत जरूरते पूरी की जा रही है प़र भारतसरकार के कानो प़र तो जू नहीं रेंगती ,तो हमारी सरकार से विनती है की वो अपने देशवासियों का ख़याल करके उनको तब तक रियायतें तो देंवें जब तक की रेसेसन पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता
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