न्यायालय में न्याय पाने
जो भी जाता है
न्याय मांगते मांगते
बूढा अश्व सम हो जाता है ,
आँखें भरिया जाती है
कान बहरा हो जाता है
दन्त विहीन मुख
हिप्पो कि भांति मुस्कुराता है ,
न्यायाधीश झूठे सच्चे
दोनों को देखता है
कौन सच्चा है कौन झूठा
समझ नहीं पाटा है,
इसी तरह चलता रहता है केस
बदलते रहते हैं परिवेश
जज फैसला देता है
देखकर वकीलों के फेस ,
फिर सच्चा आदमी घटमुंडा बन
लुटाकर सर्वस्व ,लौट आता है
सच्चाई उजागर नहीं होती
बेईमान जीत जाता है
Sunday, April 18, 2010
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