Sunday, April 18, 2010

नियति

न्यायालय में न्याय पाने
जो भी जाता है
न्याय मांगते मांगते
बूढा अश्व सम हो जाता है ,
आँखें भरिया जाती है
कान बहरा हो जाता है
दन्त विहीन मुख
हिप्पो कि भांति मुस्कुराता है ,
न्यायाधीश झूठे सच्चे
दोनों को देखता है
कौन सच्चा है कौन झूठा
समझ नहीं पाटा है,
इसी तरह चलता रहता है केस
बदलते रहते हैं परिवेश
जज फैसला देता है
देखकर वकीलों के फेस ,
फिर सच्चा आदमी घटमुंडा बन
लुटाकर सर्वस्व ,लौट आता है
सच्चाई उजागर नहीं होती
बेईमान जीत जाता है

No comments: