Thursday, April 29, 2010
न्यायपालिका और जनता जनार्दन ,शासक और शासन
इतिहास गवाह है कि जिस देश में भी जिस शासक के शासन काल में वहाँ कि जनता का विश्वास उस देश कि न्याय पालिका से उठ गया क्योंकि वहां कि न्यायपालिका में दोष उत्त्पन्न हो गए थे चाहे तो वो शासक के कारण अथवा उसके कानूनी सलाहकारों अथवा क़ानून के कारिंदों के कारण ,या कारण कोई भी रहा हो ,उसी देश अथवा शासक का अंत हो गया अथवा वहां कि जनता ने उस देश का तख्ता पलट कर दिया ,और ऐसा मुस्लिम देशों में तो अक्सर होता ही रहता है इससे प्रतीत होता है कि वो लोग अपने अधिकारों के प्रति अधिक सजग हैं बामुकाबले हमारी देश कि जनता के ,क्योंकि जिस तरह क़ानून कि धज्जियां हमारे देश में उड़ाई जा रही हैं वैसी तो किसी देश में भी होती प्रतीत नहीं हो रही ,यद्यपि मोटे तोर प़र तो हमारे देश के दो उदाहरण सभी जानते हैं ,जब तक राजपूतों के शाशन में न्यायपालिका में दोष नहीं था तब तक उनका शासन चला और दोषयुक्त होने प़र जनता ने उसे उखाड़ दिया और फिर आ गया मुगलों का शासन ,जब तक मुगलों कि न्याय प्रणाली साफ सुथरी और जनता कि सुनती रही अथवा न्याय प्रणाली दोषी नहीं हुई तब तक मुग़ल शासन कि नीव भी नहीं हिली और जब ओरंगजेब के जमाने में न्याय पालिका में दोष उत्पन्न हो गए तो धीरे धीरे उसका भी अंत हो गया और उसके बाद आ गया अंग्रेजों का शासन ,जब तक वो जनता को सही न्याय देते रहे तब तक तो उनका शासन चला और जब उनकी न्याय पालिका में भी भाई भतीजावाद पैदा हो गया तो जनता एकजुट होकर उनके शासन को भी समाप्त करके ही दम लिया ,तो मेरा कहने का तात्पर्य है कि भारत देश में लोकतंत्र को बचाना है तो न्यायपालिका में सुधार करना होगा वरना आज जो हाल हमारे देश कि न्यायपालिका का है उससे तो दिन प्रितिदीन जनता का विश्वास उठता जा रहा है और जिस दिन वो विश्वास पूर्णत: ख़तम हो जाएगा उस दिन क्या होगा ये तो भगवान् ही जान सकता है और कोई नहीं .यद्यपि जनता अपने देश कि न्यायपालिका प़र आज भी विश्वास करती है प़र जनता ही न्याय ना मिलने के कारण या न्याय मांगने वाले को उलटा फंसाकर ,चारों और त्राहि त्राहि मची है यदि किसी को यकीन ना हो तो देश में सर्वे कराकर देख ले स्वत:ही ज्ञात हो जाएगा
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