Sunday, February 12, 2017

dalit


जब तक दलित ,हरिजन मजदूर मन्दिर हेतु नींव खोदता है उसमे चिनाई  करते समय ईंट ,सीमेंट लगाता है तब तक क्या वो हरिजन ,दलित ,नहीं होता और जैसे ही मन्दिर बनकर तैयार हो जाता है और उसमे भगवन की मूर्तियां स्थापित हो जाती हैं और पूजा करने का वक्त आता है तो उस मजदूर को मंदिर में घुसने या पूजा करने का अधिकार नहीं दिया जाता क्योँकि अब वो दलित और हरिजन बन जाता है ,ये कहाँ का न्याय या न्यायसंगत तरीका है ,
अब सोचिये की जो मनुष्य भगवन के पगों से लेकर शीश तक बैठा रहा हो उसे उसी भगवन की पूजा का अधिकार क्योँ नहीं दिया जाता ,क्या यही  हमारा विशिष्ठ समाज है ।

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