डी डी ऐ का नया नाम करण संस्कार जो मीडिया ने किया है वो ही वास्तविकता है ,डी डी ऐ के अधिकारियों का लोगो के साथ मिलकर जो घपला किया गया है ये तो लोकतंत्र में जनता के सामने मीडिया के कारण आ गया है परन्तु जो घपले वहां पर डी डी ऐ के दलालों और चमचों के साथ मिलकर किए जाते हैं उनकी भनक तो जनता को लगती ही नहीं उसको तो केवल भुक्त भोगी ही जानता है क्योंकि अगर वो मीडिया के पास जाता भी है तो उसकी कोई नहीं सुनता हालाकि मीडिया दावे तो बड़े बड़े करता है परन्तु हाथ केवल बड़े घोटालों में ही डालता है ,मेने भुक्तभोगी होने के नाते जो वहाँ देखा है और सहा है उसकी बानगी देखिये ,एक डी डी ऐ के दलाल और छुत्भेये नेता ने अपने भाई को ब्लैक मेल कर पैसा एंठने के लिए डी डी ऐ के अधिकारियो और कुछ डी डी ऐ अथोरिटी के साथ मिलकर २२ वर्ष पुराने करारनामे का हवाला देकर मात्र एक दरख्वास्त दे दी की वो भी इस प्रोपर्टी में हकदार है बस इसी के आधार पर तुरत फुरत में एक इन्फोर्मिन्न्ग लैटर मुझे भेजा गया गया ज्निसका जवाब में ९० पेपर का जवाब दे दिया गया जिसको देखने के बाद भी वहां के एक ऊच्च अधिकारी ने करोडो की प्रोपर्टी का हवाला दे कर लाखों रूपये की मांग कर दी हमारे मना करने पर उसने कहा की आप घर जाकर आराम से सो जाओ आपके कागज़ सब सही है हम कनवेंस डिड को कैंसल नहीं करेंगे
उसके कुछ समय बाद एक पत्र हमको मिला की आपकी डिड केंसिल कर दी गई है और वो भी पात्र भेजा केंसिल करने के २ महीने बाद ,उसके बाद हम डी डी ऐ के निचले स्तर के अधिकारी से लेकर ऊच्च अधिकारियो जिनमे कमिश्नर और चेयरमेन के पि एस तक से मिले ,उन्होंने डी डी ऐ के उप अध्यक्ष से तो उन लोगो ने मिलने ही नही दिया और इन लोगो से ऊपर है उनसे भी मिलजुल रहे है पर नतीजा डाक के तीन पात ही हैं
ईन अधिकारियों ने हमको नाही तो सूना ना ही कोई शो कौस नोटिस दिया और फ्री होल्ड कैंसिल कर दी जब की फांसी देने से पहले भी अभियुक्त से अन्तिम इच्छा पूछी जाती है पर इन्होने तो बिना पूछे ही फांसी दे दी और जब भी मिले तो ये कहते हैं की शिकायत करता को मना लो ,और शिकायत करता करोडो रुपयों की मांग करता है इससे सिद्ध होता है की डी डी ऐ के अधिकारियों की उसके साथ मिली भगत है तो आप देखिये आज के लोकतंत्र में डी डी ऐ का कितना अच्छा रोल है ,मैं जिस नतीजे पर पहुचा हूँ उसके आधार पर वास्तव में ५ या १० % अधिकारियों को छोड़कर सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ,ऐसा प्रतीत होता है की दिल्ली में शायद ही इतना करप्ट डिपार्टमेंट कोई और हो डी डी ऐ के बहार आज भी दलालों की भीड़ जमा होती है और जो काम करान ऐ का वायदा करके पैसे की डिमांड करते हैं ,बिन पैसे दिए तो वहां काम हो ही नहीं सकता चाहे कोई भी एडिया रगड़ रगद के मर ही क्यों ना जाए
अंत में मैं कहूंगा की यदि सरकार वास्तव में जनता को मकान देना चाहती है तो डी डी ऐ को हटाकर कोई एनी व्यवस्था करे
Sunday, January 25, 2009
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