Saturday, January 24, 2009
लोकतंत्र में न्याय व्यवस्था भी चरमरा गई सी लगती है
आज प्रत्येक हिन्दुस्तानी का विश्वास अपने देश की सभी व्यवस्थाओं से उठ चुका है उसके बावजूद भी न्याय व्यवस्था में उसका विश्वास दृढ है परन्तु पिछले कुछ समय से देखने और सुनने में भी आया है की निचले कोर्ट्स के कुछ न्यायाधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाये गए जिससे आम हिन्दुस्तानी को निराशा ही हुई है क्योंकि एक न्याय प्रणाली ही बची थी जहाँ से आम नागरिक न्य्याय पाने की उम्मीद रखता था आज उसे वो भी धूमिल होती नजर आ रही है आज कोई भी हिन्दुस्तानी निचले कोर्ट्स पर यानी के हाई कोर्ट से निचले न्यायालयों पर तो विश्वास ही नही करता जनता में आम कहावत प्रचलित है की ये सब तो सब्जी भाजी की दुकाने है अब यदि न्याय प्रणाली में भी भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें जमा ली तो कोई भी आम आदमी जिसके पास पैसा नही है न्याय पा ही नही सकता और ऊपर के न्यायालयों में आम आदमी जा नही सकता क्योंकि वहां के वकीलों की फीस जो की एक एक पेशी की पचास हजार से लेकर पाँच पाँच लाख तक है वो आम हिन्दुस्तानी तो दे नही सकता और इसके बावजूद भी खरीद फरोक्त भी जारी है अब आप सोचिये भला आम आदमी कैसे न्याय पा सकता है ,पैसे वाला आदमी तो अपने पैसे के बल पर नए नए तरीके अपना कर सामने वाले को घुटने टेकने को मजबूर कर देता है या उसके घुटने ही तोड़ देता है वो रोता चिल्लाता रहता है पर उसकी कोई नही सुनता इसलिए वो कोई भी तरिका अपना कर aatmhatyaa कर लेता है और फ़िर police भी कोई ना कोई कहानी गडकर फाइल बंद कर देती है
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