नेताजी के रक्त में बसे कीड़ों का अपना -अपना अनुभव ----------
पहला कीडा -------उवाच
यही वो खून है
जो कभी भावुक नहीं होता
अपनों को भी लूटने में
तनिक संकोच नहीं करता
दूसरा कीडा ------उवाच
इस खून में जो नशा है
वो शाराब में भी नहीं होता
भाँती -भाँती के खून पीकर
काकटेल से कम नहीं होता
तीसरा कीडा -----उवाच
इस खून को पीकर
मैंने कई बार अजमाया है
झूठ फरेबी ,धोखा धडी कर
अरबों रुपया कमाया है
Thursday, January 29, 2009
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2 comments:
वाह! बहुत ही बढिया रचना लिखी है। नेताओ के खून का अच्छा परिक्षण किया है।बिल्कुल सटीक।
वाह !! अच्छी रचना ....
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