जब से भारत सरकार ने( सी आर पी सी )में गिरफ्तारी से सम्बंधित ,संविधान में महत्त्वपूर्ण संसोधन पास किया है की ७ साल या उससे कम की सजा के प्रावधान वाले केसेस में बिना न्यायालय की अनुमति के गिरफ्तारी ना की जाए तभी से देश भर के वकीलों ने हड़ताल और ना जाने क्या क्या करना शुरू कर दिया है यद्यपि संसोधन में सरकार का लक्ष्य व्यापक और सुधार को प्राथमिकता देना है ,और सरकार ये भी चाहती होगी की जो केसेस न्यायालयों में कितने ही सालो से लटके पड़े रहते हैं वो भी ख़त्म हों और उनकी संख्या सरकार के मुताबिक एक करोड़ पचास लाख है और उनको निपटाने के लिए लगभग दस हजार न्यायालयों की है ,इसमे वास्तविकता ये है की हमारे देश में न्यायिक प्रकिर्या बहुत -बहुत ही धीमी है उसका कारण भी वकील और पुलिस है ,इन दोनों के बीच में न्यायाधीश बेचारे फंसे रहते हैं क्योंकि उनको ये तय करना मुस्किल हो जाता है की अभियुक्त कौन है ,अक्सर ऐसा देखा जाता है की पुलिस अपनी इन्वेस्टिगेशन के आधार पर चींटी ना मरने वाले को किल्लर ,नपुंशक को रेपिस्ट ,मामूली चोर को बहुत बड़ा डकेत ,और सीधे साधे इमानदार इंसान को फ्रौड़ ,पुलिस से पंगा लेने वाले को आतंकवादियों का सरगना ,ना जाने कितने सीधे साधे लोग इनकी गिरफ्त में आकर पूरे जीवन जेलों में जिन्दगी काटते रहते हैं और उनपर ऐसी ऐसी धाराए ,वकीलों से सलाह लेकर लगा देते हैं की जीवन भर बेल मांगते रहे तो वो भी ना मिले हलाकि हमारे संविधान में सभी के हेतु बेल का प्रावधान है पर पैसों के अभाव में ना जाने कितने ही वर्षों से कितने ही शरीफ आदमी जेलों में जीवन यापन कर रहे है
क्योंकि छोटे न्यायालयों में ये वकील और पुलिस क्या क्या करते हैं उसको लिखने में भी शर्म आती है परन्तु उच्च न्यायालयों में तो बेल कराने वालों की इतनी मोटी फीस है की मध्यम दर्जे का व्यक्ति भी वो भर नहीं सकता ,छोटा मोटा वकील भी बेल के लिए २५ से ३० हजार रुपया एक पेशी का मांगता है और सीनियर वकील तो एक एक पेशी के लिए लाखों रूपये लेते हैं यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार वकील कर भी ले तो सामने वाले का वकील उलटी उलटी दलीले पेश करके जमानत होने ही नहीं देता और फ़िर या तो उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाए या फ़िर जेल जाए ,और उच्चतम न्यायालय के वकीलों की बेल कराने की फीस २ या ४ लाख से कम तो पर पेशी है नहीं ,यदि हाई कोर्ट में कोई गलती से भी एंटी सिपेट्री बेल लेने चला गया तो या तो सूखकर कांता हो जायेगा या आत्महत्या कर लेगा क्योंकि झूठे व्यक्ति का वकील उसकी बेल तो होने नहीं देगा चाहे उसे कितना ही झूट क्यों ना बोलना पड़े और झूटा व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कुछ भी कर सकता है क्योंकि उसे तो धन या प्रोपर्टी तभी मिलेगी जब तक वो पूरा दवाब बना कर चलेगा और शरीफ व्यक्ति की बेल नहीं होने देते और दस दस या १५ २० तक तारीखे पड़ती रहती है अक्सर ये देखा गया है की वकील और पुलिस मिलकर एक अच्छे से अच्छे न्यायाधीश को अपनी वाक् चातुर्यता से दिग्भ्रमित कर देते हैं की उनको एक सही फेसला लेने के लिए हजारों बार सोचना पड़ता है की कहीं कोई शरीफ व्यक्ति ना मारा जाय ,लगभग सभी जजों की यही इच्छा होती है क्योंकि वो तो अपना फेसला वकीलों की बहस के आधार पर ही करते हैं ,यदि शरीफ व्यक्ति का वकील कुछ कमजोर है तो भी वो तो गया बेचारा काम से ,इन सभी तर्कों को ध्यान में रखकर सविधान में ये संसोधन किया गया ,दूसरा कारण है कोर्ट को केशों की अधिकता से बचाना और पेंडिंग केशों को निपटा कर ,न्याय प्रकिर्या में सुधार और तवरित सेवा प्रदान करना ,पर वकीलों को ये इसलिए अच्छा नही लगता की जिन केशिस के कारण उनका घर चलता था और वो रात दिन अपनी जेबें भर रहे थे उन केसेस को साधारण घोषित कर दिया अब उनसे बेल की सेवाए लेने वाले कम हो जायेंगे उन्हें शरीफ आदमी मरे या जिंदा रहे इस बात से कोई मतलब नही हैं ,हमारे विचारों में तो न्यायालयों के जज मीडी एशन की प्रकिरिया को सख्ती से लागू करके दोनों पार्टियों की सीधी बात सुनकर फेसला करें तो ज्याद्द से ज्यादा केस सोल्व करने में सफलता मिलेगी और पेंडिंग केस भी यथा शीघ्र निपट जायेंगे हमारे विचार से तो सरकार ने संविधान में संसोधन करके बहुत ही अच्छा कार्य किया है ,वकीलों को तो आज नहीं तो कल अपनी हड़ताल समाप्त करनी ही पड़ेगी सरकार के इस ठोस कदम के बारें में आपकी क्या राय हैं क्रप्या लिखें
Thursday, February 5, 2009
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1 comment:
aapse milkar achchha laga. narayan narayan
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