Thursday, February 12, 2009
हमारा लोकतंत्र
हमारे लोकतंत्र को यदि परिभाषित किया जाए तो नतीजा निकलेगा की उसे भ्रष्टतंत्र कहेंगे ,फंड के नाम पर करोडो रूपये जनसेवकों को प्रितिवर्ष दिए जाते हैं जेसे की दो -दो करोड़ रूपये प्रतिवर्ष कौंसलर ,विधायक और सांसद को अपने -अपने क्षेत्रों में डवलपमेंट करने हेतु सरकार देती है परन्तु आप जाकर मुआयना करे तो वो ही टूटी फूटी सड़के,गंदे नाले ,सिविर व्यवस्था की जर जर हालत ,बिजली की किल्लत ,पानी का बुरा हाल ,पार्कों के नाम पर खाली पड़ी जमींन आवारा कुत्तों की भरमार ,कतार बसे ,जानवरों की भाँती बसों में सफर करते लोग ,भ्रष्ट नोकर्शाहों और राजनीतिज्ञों का चेहरा उजागर करती नजर आएँगी ,इनको जितना भी कोसा जाए उतना हिउ कम ,
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2 comments:
आप गलत जगह मुआयना करने गए है। जरा उन के घरों में जा कर देखिए उन्होनें कितनी तरक्की की है। इसे ही "यह" लोकतंत्र कहते हैं।...........हम तो सिर्फ मनमसोस कर ही रह जाते हैं।सही लिखा है आपनें।
इस फंड का नाम ही है सांसद ,विधायक विकास निधि . इसी निधि के चक्कर मे टिकट बिकने लगे . परमजीत जी से १००%सहमत
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