Saturday, February 21, 2009

लोकतंत्र में भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार दिन प्रितिदीन बढता ही जा रहा है ,कोई भी सरकारी कार्यालय अथवा सार्वजनिक संस्थान इससे अछूता नही है आये दिन कोई ना कोई बड़ा अधिकारी या छोटा अधिकारी सी ,बी ,आई ,,एंटी करप्शन ,,या इकनॉमिक ओफ्फेंस के हत्थे चदता ही रहता है ,ये भी वास्तविकता है की आज किसी भी कार्यालय मेंबिना रिश्वत या सुविधा शुल्क दिए कोई भी कार्य संपन्न नही हो पाता और जो व्यक्ति सम्बंधित अधिकारी को रिश्वत नही देता तो या तो उसका कार्य ही नही किया जाता अथवा कार्य इतना बिगाड़ दिया जाता है की वो किसी भी उच्च अधिकारी के पास चला जाए या सिफारिस भी ले आये तो सीधा काम सीधा नहीं हो सकता बल्कि उस व्यक्ति को फंसा दिया जाता है और वो फ़िर कसम खाता है कि भविष्य में सभी कार्य रिश्वत देकर ही कराएगा ,यद्यपि ये रिश्वत का सिलसिला कोई एक पॉइंट पर ही नहीं है बल्कि प्रत्येक पॉइंट पर है ,छोटे अधिकारियों में रिश्वत का माहोल बहुत गर्म है क्योंकि वो कहते है कि हमाम में सभी नंगे है फ़िर डर काहे का ,ऊपर के अधिकारियों में इमानदार अधिकारियों कि संख्या अधिक है जब कि नीचे वालों में बेईमानो कि संख्या तो ९० %है और ये माहौल तो तब है जब कि सभी दफ्तरों में रिश्वत ना देने के बोर्ड लगे हैं और लिखा है कि रिश्वत देना या लेना दोनों ही क़ानून कि निगाह में जुर्म है पर कोई नही मानता ना देने वाला और नाही लेने वाला ,अत;हमारी भ्रष्टाचार रोकने वाले सभी संस्थाओं से प्रार्थना है कि वो थोडा और सख्ती से पेश आये तभी इस पर काबू पाया जा सकता है यद्यपि ये भ्रष्टाचारियों कि नस नस में बस चुका है

3 comments:

Anonymous said...

देखिये हम भी इसके सख्त खिलाफ़ है हम कभी किसी को रिश्वत कतई नही देते .द्स्तूरी की बात अलग है :)

अनुनाद सिंह said...

भ्रष्टाचार भारत की सबसे गहरी समस्या है। लेकिन आपके लेख में इसका ही केवल विशद् वर्णन है। हम सबको इसका कारगर समाध ढ़ूंढ़ने और उसे प्रस्तुत करने की चुनौती स्वीकारनी चाहिये। केवल समस्या का नाम लेने से समस्या कभी हल नहीं होगी। समाधान प्रस्तुत करना एक बहुत बड़ा सृजनात्मक कार्य है और इसी लिये कठिन भी है।

hem pandey said...

आपने भ्रष्टाचार के सर्वविदित तथ्य को ही उजागर किया है. वर्तमान परिस्थितियों में इस पर नियंत्रण असंभव है.