Saturday, February 21, 2009
लोकतंत्र की न्याय प्रक्रिया में पुलिस की भूमिका
लोकतान्त्रिक व्यवस्था में न्याय प्रकिर्या को व्यवस्थित करने में मुख्य भूमिका पुलिस की है ,क्योंकि किसी भी अन्याय को दण्डित प्रक्रिया से सम्बंधित करने की शुरुआत पुलिस थाने से ही होती है ,पुलिस जो कुछ भी उलटा सीधा समझकर ऍफ़ .आई आर में दर्ज कर बिना सोचे समझे धाराओं का प्रयोग करती है ,पूरी न्याय व्यवस्था उसी के आधार पर चलती है ,न्यायाधिकारी की सम्पूर्ण सोच उन धाराओं को आधार मानकर चलती है और जहाँ तक धाराओं की बात है वो तो ऍफ़ आई ,आर दर्ज कराने वाले के ऊपर आधारित है वो जितना मीठा डालता है उतनी ही सख्त या ज्यादा सजा वाली धाराए सामने वाले पर थोप दी जाती हैं और फ़िर सामने वाला एडियाँ रगड़ -रगड़ कर कोर्ट कचहरी के चाक्कर लगाता -लगाता अपना धन धान्य लुटाता जिन्दगी भर लगा रहता है पर उसको न्याय नहीं मिलता आनंद की बात ये है की पुलिस वाले जिनको क़ानून का तनिक भी ज्ञान नही होता मात्र एक छोटी सी धाराओं की किताब को देखकर या अधिक मीठा खाकर ,बिना उच्च अधिकारियों की सलाह के एक मामूली सा एस ,आई ,जिसको आई ,ओ (इन्वेस्तीगेशन आफिसर ) कहा जाता है वो मामूली से मामूली केस में चाहे वो दो भाइयों की लड़ाई ही क्यों ना हो या छोटा मोटा प्रापर्टी विवाद ही क्यों ना हो अधिक से अधिक मीठा खाकर ऐसी धाराए ऍफ़ ,आई ,आर में लिख देता है की जीवन भर फेसला ही ना हो जैसे की एक केस में मैंने देखा है की एक बेईमान भाई के कहने मात्र से मामूली प्रापर्टी विवाद में अधिक मीठा खाकर आई ,ओ ने धारा ४२०,१२०ब,३६७,४६८,५११ लगाकर केस दर्ज करा दिया और जब बड़े -बड़े अधिकारियों से विक्टिम ने बातचीत की तो वो शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे और पूरा भांडा आई ,ओ, के सिर पर फोड़ रहे थे यानी की वी बेचारे उसमे कुछ भी करने की पोजीसन में नहीं थे अब आप सोचिये की जब उच्च अधिकारी उसी डिपार्टमेंट के कुछ नही कर सकते तो न्यायालय के अधिकारी ही क्यों उन धाराओं पर सिर खपाई करेंगे उनको तो लड़ने वालो के वकील जो समझायेंगे उसी के आधार पर फैसला देंगे अब चाहे उसमे कोई भी मारा जाए आई ,ओ ने तो मोटी मोटी धाराए लगाकर अपने कार्य की इतिश्री कर दे पर यदि न्यायाधिकारी धारा लगाने वाले आई ,ओ, को पूछें की धाराए किस आधार पर उसने लगाई हैं तो फ़िर शायद वो डरकर ठीक ही धाराओं का प्रयोग करेगा क्योंकि उसको अपनी खिंचाई की परवाह होगी पर वो तो मनमर्जी से धारा लगाकर ,परेशानी खड़ी करके छुट्टी पा लेता है मेरे हिसाब से ५०%मुकद्दमे तो झूठे ही बनवाकर कोर्ट में दाल दिए जाते हैं और उसमे कितने मासूम और निरीह व्यक्ति सजा पा जाते हैं शायद कोई नहीं जानता यद्यपि वकीलों की बहस के आधार पर जज अपनी और से पूरी तरह न्याय करने की कोशिश करते है पर उन झूटी धाराओं के आधार की वजह से केसेस बहुत लंबे समय तक चलते रहते है अत; इमानदार और कम पैसे वाला या तो टूट जाता है या मजबूरी में आई, ओ, के मुताबिक फेसला कर लेता है अब कटेगा तो छुरी से खरबूजा ही ,छोरी का तो कुछ बिगडेगा नहीं ,अत; हमारी पुलिस के उच्च अधिकारियो से भी प्रार्थना है की उनको केस दर्ज होने पर जो धाराएं लगाई जाती उनको मात्र आई ,ओ, के ऊपर ना छोड़ कर अपनी दखलंदाजी भी करे जो विक्टिम ,लोकतंत्र ,और न्याय व्यवस्था के लिए हितकर साबित होगा और जो उंगलियाँ पुलिस पर भी उठती है वो भी बंद हो जायेगी
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