Tuesday, February 24, 2009
न्यायालयों में देरी के कारण (भारत के लोत्न्त्र में )
न्यायालयों की शिथिलता ,अक्र्मंडयता ,परिवर्तनशीलता, तारीखों में दीर्घ्कालिन्ता ,महँगी न्याय प्रकिर्या ,और भी बहुत सी बातें है जिनके कारण आज किसी भी अच्छे शरीफ और इमानदार आदमी को या तो न्याय मिलता नहीं और अगर मिलता भी है तो तब जब किउसका पूरी तरह शोषण नहीं हो जाता ,यद्यपि कोर्ट कचहरी के बारे में बहुत सी कहावतें संसार में प्रचलित हैं जैसे कि कोर्ट कचहरी जाकर आज तक किसी को कुछ मिला है या कोर्ट कचहरी जाने से तो अच्छा है कि आदमी दो रोटी सूखी खा ले ,या जिसने फैसला ना करना हो तो कोर्ट कचहरी चले जाओ ,आज ही मैंने पेपर न्यूज़ पेपर में पढा कि १५ या २० साल से मुकद्दमे कोर्ट्स में पड़े हैं पर फेसले ही नही हुए ,फैसला तो तभी होगा जब न्यायाधीश करना चाहेगा या सामने वाली पार्टी करना चाहेगी वरना तो तारीख पर तारीख पड़ती जायेंगी ,वैसे भी आज रिट,सुइट ,या एंटीसिपेट्री बेल केलिए केस डालने का कोई ओचित्य नही है क्योंकि सभी में तारीख पर तारीख कोर्ट देता रहता है जैसे कि कोई आदमी ने एंटीसिपेट्री बेल के लिए कोर्ट गया परन्तु आज तक एक वर्ष होने को है और १२ तारीखें पड़ चुकी हैं कि वो व्यक्ति सभी कानूनी प्रकिर्या पूरी कर चुका है परन्तु फ़िर भी एक बेईमान व्यक्ति उसको बेल नही लेने देता जब कि केस स्टेट का है परन्तु उसने प्राइवेट एंट्री लेकर अपने दो दो वकील बेमतलब खड़े कर रखे है है ,और कोर्ट में उन्ही कि बात सुनी जाती है क्योंकि वो सीनियर वकील हैं ,वो बार बार तारीखे मांगते है तो जज उनको तारीख दे देते है अब ये तो जज ही जाने कि उनकी ऐसी क्या मजबूरी है कि न्याय प्रकिर्या एक तरफ रखकर काम हो रहा है , दूसरी और सुनिए जहाँ कि प्लानटिफ कि बात सुनी जानी चाहिए वहाँ आज न्याय्याल्यों में विरोधी कि बात सुनी जाती है ,यदि कोई आज आपका मकान कब्जा ले तो भाई कोर्ट में ना जाना वहीं कुछ ले दे कर फेसला कर लेना या किसी तरह से भी खाली करा सको तो करा लेना वरना कोर्ट चले गये तो केस डालोगे उसके कब्जे वाली जगह पर ,और उसके पैसे यानी के फीस भी तुम जमा करोगे और जज साहब स्टेको दे देंगे सामने वाले को पूरी कोठी पर ,फ़िर आप कुछ भी करने के नही रहोगे यद्यपि कानूनन तरीके से स्टेको उसी पोर्शन पर दिया जाना चाहिए जो विवादित है या जिसकी फीस जमा हुई है नाकि सम्पूर्ण प्रोपर्टी पर ,पर अब जज साहब से पूछे कौन ,या उसके लिए फ़िर जाओ उच्च न्यायालय ,उसके लिए फ़िर मोटे नोट्स चाहिए ,या फ़िर चुप चाप पड़े रहो आपका मकान घिर गया सो घिर गया ,है ना अंधा क़ानून भारत के लोकतंत्र में मई तो आपसे प्रार्थना करूंगा कि आप कभी भी कोर्ट मत जाओ चाहे मर क्यों ना रहे हो क्योंकि वहाँ कुछ नही होने वाला या ये कहिये कि न्याय मिलने वाला नही है किसी भी कोस्ट पर ,हाँ यदि कोई आप पर केस दाल दे तो चले जाओ ,किराए दार ने भी मकान पर कब्जा कर लिया हो तो भी नही जाना किरायेदार को ही कुछ देकर निकाल देना आपके हित में रहेगा क्योंकि आप उसे निकलवाने जाओगे और वो कोर्ट में मिलकर आपको ही फेंसा देगा फ़िर आप क्या करोगे ,,,,,,,
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2 comments:
किसी कवि ने कहा है
भले बैठ जंगल में धूनी रमाना
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना.
सुधार करना होगा....क्योंकि आम आदमी पुलिस और कचहरी के चक्कर से बचना चाहता है... यही कारण है कि कानूनों का कोई फायदा आम आदमी नहीं उठा पाता ।
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