Monday, March 9, 2009

लोकतंत्र में चीफ जस्टिस के सम्मुख आग लगाकर आत्महत्या क्योँ ?

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सभ्य समाज का सभ्य पुरूष आख़िर क्यों चीफ जस्टिस के सम्मुख स्वयम पर आग लगाकर आख़िर आत्महत्या क्यों करना चाहता है ,जहाँ -जहाँ पर भी उसने गुहार लगाई होगी शायद ही किसी ने ने उसकी पीडा को जाना हो या जानने की कोशिश की हो ऐसा प्रतीत नही होता हर किसी ने उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त कहकर टाल दिया होगा ,और अदालत ने भी आवेदन की सुनवाई के बाद लीगल सर्विस अथोरिटी से उसकी मानसिक हालत को देखकर काउंसलिंग की सलाह दी ,और अतिरिक्त जिला चीफ जज ने भी उसकी मानसिक हालत ख़राब बतायी ,और ये वास्तविकता भी हो सकती है पर ज़रा सोचिये किसी शरीफ आदमी को उसके एकमात्र मकान पर ऍम सी डी और बिल्डर आदि मिलकर अवेद्य निर्माण कहकर ,३० या ३५ कोर्ट केसेस उसपर डलवा देंऔर पैस्सा उसकी जेब में मुक़द्द्मा लड़ने के लिए हो नही ,कोर्ट में वकीलों को तो पैसा देना ही पडेगा और कोर्ट के भी चक्कर लगा -लगाकर चप्पले टूट गई हों कपड़े बसों में धक्के खाते -खाते फट गए हों तो ज़रा सोचिये अच्छे से अच्छे व्यक्तिका मानसिक संतुलन भी ख़राब हो जायेगा इस बेचारे मजलूम की तो बात क्या है ,हमारे देश की कानूनी प्रकिर्या इतनी दुरूह है की यदि कोर्ट में कोई आदमी एक केश किसी पर डाल दे तो धीरे -धीरे उसी के ६ केस बन जाते है और आजकल जब से प्रोपर्टी के रेट अनाप सनाप बड़े है तब से कारपोरेशन और ड़ी डी,ऐ,या यों कहिये की जो उससे सम्बंधित कार्यालय है सभी ने अपने सुविधा शुल्क में असीमित बढोतरी कर राखी है ,जैसे सरकार शिकंजा कसती है इनका रिस्क बढ जाता है और ये अपना रेट बढा देते है और ये डिपार्टमेंट या बिल्डर अथवा भूमाफिया प्रत्येक कोर्ट की तारीख पर नई -नई दरख्वास्त लगाते रहते है कारण केसेस कभी ख़त्म ही नही होते और फ़िर एक दिन प्रापर्टी मालिक या तो उस जगह को ही छोड़ देता है या जैसे वो कहतेहै करता है ,इस प्रकार से शरीफ आदमी की मल्कियत छीन जाती है और लोकतंत्र ,मालिक ,और कोर्ट खडा -खडा सब कुछ देखता रह जाता है अब बताओ उसे न्याय कहाँ मिला ,और जो हम आज देख रहे है उसके मुताबिक तो एक परमजीत ही नही बल्कि दिल्ली में हजारो परमजीत है जो किसी तरह से अपनी मल्कियत बचाने की कोशिश तो कर रहे है पर बचेगी नही उसे लुटेरे लूट ही लेंगे आज नही तो कल ,क्योंकि कानूनी प्रिकिर्या बहुत लम्बी है ,आदमी मर जाता है पर फेसले नही होते उसकी आने वाली पीदियाँ भी लड़ती रहती है पर नतीजा कुछ भी नही नही ,और फ़िर सरकारी संस्थाए उनमे भी एम् ,सी ,दी यादिल्ली विकास प्राधिकरण जिनके बारे में सभी जानते है की ये कितनी इमानदारी से कार्य करती है इनको आए दिन कोर्ट में फटकार पड़ती रहती है पर इनके कान पर जू नही रेंगती ,इनका तो काम ही जनता को परेशान करना है ,तो मेरे भाई परमजीत जी मैं तो आपको यही सलाह दूंगा की किसी तरह से इनसे समझोता कर करा कर दूरकरो वरना ये आपको कुछ भी बना देंगे इस लिए भाई bachi हुई jindgi को खुशी से jee लो और आत्महत्या आदि का sochnaa छोड़ दो ,कहाँ -कहाँ टक्कर मारते firoge यहाँ तो andher nagri chopat raajaa है

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