Saturday, March 21, 2009

आख़िर सुप्रीम कोर्ट ने भी माना की आम आदमी को न्य्याय में देरी

लोकतान्त्रिक भारत में यदि आम आदमी को न्याय पाने का भरोसा है तो वो है केवल उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय पर ,इससे नीचे के न्यायालयों से तो भरोसा पूरी तरह उठ चुका है क्यों की वहाँ पर गरीब ,कमजोर ,शरीफ,अशिक्षित ,आदमी को तो न्याय मिल ही नही पाता ,जब की मालदार ,मजबूत ,भरष्ट ,बदमाश ,तिकडमबाजवहाँ पर सदेव अपने पक्ष में फेसला पाकर खुश रहता है ,हम नहीं जानते आख़िर ऐसा क्यों होता है ये हिसाब लगाना तो सरकार और छानबीन करने वालों का है हम तो जो देखते है वो ब्यान कर रहे है और देरी की हालत तो ये है की तारीख पर तारीख मिलती रहती हैं और उसमे गरीब और अशिक्षित को वकील आदि ना कुछ बताते है और ना कुछ करते है और केस को लंबा खीचते रहते है और गरीब एवं न्याय अपना दम तोड़ देते हैं ये तो रही नीचे की बात अब ऊपर का हाल भी ये है की अग्रिम जमानत जैसी याचिका जो की क्र्मिनल केस पर आधारित होती हैं उनकी रिट याचिका की १२या १५ तारीखे तक पड़ती रहती हैं और शरीफ आदमी को पुलिश की मिली भगत से क्रिमिनल बनाकर मालदार या बदमाश अथवा बेईमान आदमी मजे लेलेकर उसके गले में फांसी का फंदा अटकाकर मनचाहा कार्य करवा लेते हैं अथवा उसको जेल का डर दिख -दिखा कर हार्ट प्रॉब्लम तक करा देते हैं और एक दिन वो बेचारा असमय ही निर्दोष दम तोड़ देता है और उनके मन की मुराद पूरी हो जाती है इन सब में गरीब आदमी पिस्ता रहता है और पैसे वाला मजा लेता रहता ,इस बात को तो हमारे माननीय चीफ जस्टिस तक ने भी २१ -३-०९ के न्यूज़ पेपर टाइम्स ऑफ़ इंडिया में स्वीकार है और ये वास्तविकता भी है और उन्होंने ये ताकीद भी की है की इस प्रकार के क्रिमिनल केसेस को लंबा ना खींचा जाए ,यद्द्य्पी उन्होंने तो कह दिया पर उस पर अमल होगा या नहीं वो तो राम ही जाने ,परन्तु हम इतना जरूर कह सकते हैं की ना जाने कितने गरीब ,मजबूर ,मजलूम ,शरीफ आदमी बड़े और बदमाश लोगो की झूटी शिकायते ,झूठी क्रिमिनल रिपोर्टें करा कर पुलिश के साथ गठबंधन करके या उनको कैसे ही भी फंसाकर उनको या उनकी संपत्ति को घेरने काप्रयास अथवा घेर कर ,वकीलों को मोटी-मोटी रकम एक एक तारीख की देकर बड़े वकील करके उन लोगो को दुखी कर रहे है है जिनके पास वकील करने को पैसे ही नहीं हैं ये मालदार और बदमाश लोग किसी ना किसी तरह उन गरीब लोगो इतना मजबूर कर देते हैं की वो अपनी करोडो की प्रापर्टी लाखों में देकर या तो शहर छोड़ देते है अथवा जेल में पड़े सड़ते रहते है और उन का परिवार भी बरुआ बिरान हो जाता है अत; हमारी माननीय चीफ जस्टिस जी से करवद्ध प्रार्थना है की जो देरी कोर्ट्स में हो रही है कम से कम उससे तो आम आदमी को निजात दिलाये उनकी असीम क्रपा होगी

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

भारत में आवश्यकता की केवल चौथाई अदालतें हैं। अदालतों की कमी ही न्याय में देरी का प्रधान और आधारभूत कारण है। अदालतें स्थापित करने और उन के लिए आर्थिक साधन जुटाने का काम सरकारो का है। न्याय में देरी के लिए सरकारें दोषी हैं।

अजित गुप्ता का कोना said...

राग दरबारी का लंगड याद आ गया। आम आदमी को न्‍याय में देरी नहीं है अपितु उसके लिए न्‍याय ही नहीं है। इसीलिए वह समझोता करके चलता है।