Monday, August 24, 2009

जसवंत की किताब का भूत

जसवंत सिंह जी ने अपनी किताब का उदघाटन ऐसे वक्त में करवाया जब की भारतीय जनता पार्टी में चुनावी हार को लेकर आरोप प्र्त्याक्शारोप का दौर पहले से ही चल रहा है ,इस किताब मैं जिन्ना साहब की तारीफ़ ने पार्टी तोड़ में आग में घी का काम किया है ,हम ये नहीं समझ पा रहे की जसवंत सिंह जी जैसे समझदार व्यक्ति ने ऐसा काम किससे प्रेरणा लेकर किया ,जब की अब से ४ वर्ष पूर्व वो अडवानी जी का हाल भली भांति देख चुके हैं ,जब का लगा दाग अडवानी जी अभी तक नहीं छूता सके तो फ़िर जसवंत सिंह जी को क्या कोई शौक था की ख़ुद को बेमतलब दाग लगाने के लिए किताब का विमोचन और उस पर भी जिन्ना साहब का चित्र ,आख़िर माजरा क्या था क्या वो ऐसा मुस्लिम वोटों के लिए कर रहे थे या जहाँ से वो चुनकर आए हैं वहाँ पर कुछ ज्यादा मुस्लिम भाई हैं ,यदि ठीक प्रकार से देखा जाए तो जसवंत सिंह जी ने भी अपने पैर पर ख़ुद ही कुल्हाडी से वार किया है है और जब वार कर ही लिया है तो फ़िर भरो दंड ,यद्यपि जीवन के ३० वर्ष किसी भी पार्टी के साथ बिताने और फ़िर दूध से मक्खी की तरह निकालन ,लगता तो अटपटा है है यद्यपि वो इसके हकदार भी हैं फ़िर भी पार्टी के नुक्सान और उनकी पहली गलती को मद्दे नजर रखते हुए राजनाथ सिंह जी को चाहिए की वो उनको पार्टी से ना निकाले ,और फ़िर से चेतावनी देकर गले से लगा लें ,इसी में सबकी भलाई है वरना जिस तरह से एक एक करके बुजुर्ग नेता पार्टी से बहार होते जा रहे हैं वो देश और पार्टी के हित मैं नहीं है ,कहीं इन सभी नेताओं ने उमा भरती के साढ़ मिलकर नै पार्टी बना ली तो नै मुसीबत भी खड़ी हो सकती है इस लिए अंहकार त्यागो और एक हो जाओ