Sunday, June 14, 2009

भारतीय जनता पार्टी में हार के विश्लेषण के कारन खीझ ?

देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी "भारतीय जनता पार्टी "लोकसभा चुनावों में हार के कारण नहीं ढूंड पा रही ,उसके बड़े _बड़े दिग्गज नेता चाहे वो अध्यक्ष राजनाथ सिंह जी हों या एल के अडवानी अथवा दूसरे दिग्गज ,आख़िर क्योँ पता नहीं चल रहा उसका एक ही कारण है और वो है आर एस एस का ये कहना की राजनीति केवल एयर कांदिस्नरवाले बंद कमरों में बैठकर नहीं की जाती ,शत प्रतिशत सही है और वास्तविकता ये ही है की आज भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज तो क्या छुट्भेये नेता भी घर में ही बेथ कर राजनीति कर रहे हैं और वहाँ से वो कितने काम करते हैं वो तो मेरा जैसा आदमी ही जान सकता है जो की पार्टी के लिए तन मन से समर्पित है उसको कोई भी घास नहीं डालता जब की वो ये भी जानते है की मेरे सम्बन्ध दिग्गाज नेताओं से भी हैं पर वो ये भी जानते हैं की दिग्गज नेताओं के पास हमारे जैसे कार्यकर्ताओं की बात सुनने का समय कहाँ है इसलिए वो किसी का भी कार्य नहीं करते ,और जब किसी का कार्य ही नहीं करेंगे तो भला उनको वोट कौन देगा दिल्ली में पार्टी का सातों सीट का हार जाना डूब कर मरने जैसी स्थिति हो गई है और सबसे मुख्य बात है की सभी सीट लगभग २से ३ लाख केवोटो के अन्तर से हारी गई ,ऐसा लगता है जैसे की फिक्सिंग पहले से ही थी ,पर ऐसा नहीं था ,दरअसल दिल्ली की जनता तो क्या पूरे देश की जनता ही भारतीय जनता पार्टी के झूठे वायदों से पहले ही दुखी थी और फ़िर झूठे वायदे करने शुरू कर दिए जनता वायदा नहीं देखती उसको तो का चाहिए ,एक और मजे की बात ये थी की यदि आर .एस .एस का साथ ना होता तो पार्टी १ओ या २० सीटों पर ही टपक कर रह जाती ये तो शुक्र मनाओ की बीच में उन्होंने साथ नही छोडा ,मैं तो कहता हूँ की आज आर .एस .एस को अलग कर दो फ़िर देखो पार्टी का हश्र क्या ह्बोता है ,खैर बहुत हो गया अब मैं पार्टी के हार के कारण बताता हूँ
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१ हार का मुख्य कारण वातानुकूलित बंद कमरों में बेथ कर राज निति करना (२) आपस में ताल मेल का अभाव (३)सम्पूर्ण देश की राजनीति पर विचार विमर्श का अभाव (४)एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयत्न या यों कहिये की सभी नेता अपने आप को राजनाथ सिंह अथवा अडवानी से कम नहीं समझते (५)पार्टी के कार्य कर्ताओं की पहुँच दिग्गज नेताओं तक नहीं (६)बीच वाले नेता भी उनको मुंह नहीं लगाते (७) आर .एस .एस को ज्यादा भाव ना देना (८)पार्टी के मुखर नेताओं को दूध से मक्खी की भाँती निकाल फेंकना,जैसे उमा भरती ,गोविन्दाचार्य मदन लाल खुराना यशवंत सिन्हा ,और भी कुछ अच्छे नेता होंगे जो मेरी जानकारी में नही ,(९) सही नेत्रत्व का अभाव (१०)जमीनी नेताओं की कमी (११) चाटूकारों की जयजयकार (१२) दिग्गज नेताओं का जनता से मिलन का अभाव (१३)केवल पदों के लिए राजनीति (१४)चुनावों के समय भी क्षेत्रों में जाकर सभा ना के बराबर करना मानो जनता की वोट उनकी बपोती बन चुकी है (१५) जनता से वायदे करके उनको पूरा कभी ना करना ,अगली बार के लिए इसु बनाकर रखना (१६ ) जनता को पागल समझना (१७ ) पार्टी के पास कोई मुख्य मुद्दा ना होना (१८)अटल बिहारी जी के बाद राष्टीय स्तर के नेता का अभाव (१९)पोलिंग वाले दिन भी कार्यकर्ताओं का पोलिंग बूथों पर नजर ना आना (२०)क्षेत्रीय नेताओं के द्वारा कार्यकर्ताओं के काम ना करना (२१ ) जनता का कार्य ही तो कार्यकर्ता लाते है इसका मतलब जनता का कार्य नहीं करना (२२)यदि कोई कार्यकर्ता का काम करना भी है तो उससे रंगदारी वसूलना या पार्टी कोष के लिए मोटा चन्दा वसूलना (२३)लगभग सभी कोंसिलर और विध्हायक अपनी ही उधेड़ बुन में लगे रहते हैं पार्टी की किसी को चिंता ही नही (२४ ) जनता को मन्दिर नहीं रोटी ,कपडा ,मकान चाहिए ,पूजा तभी होती है जब पेट भरा हो इस बात को समझना (२५)देश में जनता को,इ परेशानियां दूर करने की किसी को चिंता नहीं (२६)किसी भी क्षेत्र में बाहरी व्यक्ति को बुलाकर टिकिट दे देना जैसे की उस क्षेत्र में नेता रहते ही नहीं (२७) पैसों की राजनीति हो रही है (२८)पार्टी प्रेम का अभाव (२९)लोकसभा चुनावों में पार्टी के विधायक और कोंसिलर कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता (३०)एक दूसरे की टांग खींचने की बीमारी (३१)दिग्गज नेताओं का क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं से तालमेल का पूर्णतया अभाव

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