Tuesday, May 19, 2009

१५वि लोकसभा चुनावों की पहली और बाद की दलगत स्थिति

चुनावों से पहले लगभग सभी छोटे बड़े दल ,कांग्रेस पार्टी को यकदम अछूत मानकर उसके साथ अजीब व्यवहार कर रहे थे और इस प्रकार अकड़ कर घूम रहे थे जैसे की कुत्ता छाछ पीकर फूलकर कुप्पा हो जाता है और सभी अपने आप को भावी प्रधानमन्त्री मान कर खुश हो रहे थे ,चलो कोई बात नही ,सपने देखने में क्या जाता है ,और अकड़ का तो आप हिसाब ही नहीं लगा सकते ,सभी कह रहे थे मैं भी अकेला लडूंगा मेरी पार्टी अकेली ही चुनाव लडेगी मानो बरसाती मेंडक की तरह टर्र टर्र सभी कर रहे थे और तातातिरी पक्षी की भांति अपनी अपनी टांगों पर हि आकाश उठा रहे थे ,कह रहे थे मेरे बिना तो सरकार बन ही नहीं सकती और अगर बन भी गई तो चल नहीं सकती ,कहने का तात्पर्य कांग्रेस पार्टी की तो टांग ही वो थे यानी की कांग्रेस का उनके बिना कोई अस्तित्व ही नहीं था पर वास्तविकता कुछ और ही थी वो सभी पार्टियाँ थोते चने थे जो बज तो खूब रहे थे पर उबके अन्दर कुछ भी नही था या ऐसा कहिये की सब फूटे हुए घडे थे उनको पता ही नहीं था की उनसे पानी रिस रहा था जो चुनावों तक सब ख़त्म हो गया ,और एक दिन वोट भी पड़ गए फ़िर आया रिजल्ट ,और जैसे जैसे रिजल्ट आते गए सब की हवा खुश्क होती गयी सबके चेहरे जो अब तक सेब की भाँती लाल हो रहे थे अब अस्हाड़ के महीने की धुप से सूखे हुए आम की भांति पीले पीले हो गए ,और मुझे तो कहने में भी शर्म आ रही है कुछ लोगो ने बताया की कई नेताओं के तो रिजल्ट देख, सुन कर कपड़े ही ख़राब हो गए क्योंकि उनका रिजल्ट तो जीरो हो गया था और अभी तक मंत्री की कुर्सी का सुख भोग रहे थे और अब लोकसभा में जाने के भी ना रहे ,अब ज़रा सोचिये जब धोबी का कुत्ता घर का रहा ना घाट का तो ज़रा सोचिये उसका क्या हाल होगा और जब कांग्रेस सरकार बनाने लगी तो सभी छोए बड़े दल अपना अपनासमर्थन देने के लिए कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं के सामने जाकर बिना शर्तोंके अपनीदुम हिलानेलगे ,मानो उनको किसी भी प्रकार की शर्म हया हि नही आ रही ,अरे भाई कुछ तो शर्म करो क्या जिन लोगों ने भी तुमको जीता कर भेजा है उनके दिल पर क्या बीत रही होगी जब वो आपकी करतूत देख रहे होंगे की आप उनके वोट को समर्थन के नाम पर भिन्डी घिया की तरह लुटा रहे हो ज़रा सोचो अगली बार वो तुमको वोट देने से पहले हजार बार सोच कर भी शायद वोट ना देवे तो तुम लोग अगर समर्थन देना भी चाहते हो तो इज्जत के साथ तो दो इसका मतलब साफ़ खाई की आप जनता के सतत खिलवाड़ कर रहे हो क्योंकि आपको मजा पड़ गया है बस कुर्सी का इसलिए आपको तो वो हि चाहिए चाहे अपनी और जनता की अस्मत हि दाव पर क्योँ ना लगानी पड़ जाय इसलिए भाई मेरी राय तो है की अब फ़िर जनता के बीच जाओ और उनसे अपनी गलतियां पूछ कर उनको दूर करने के प्रयास करो क्यों की अभी तो अगले चुनाव के लिए ५ वर्ष पड़े हैं जब तक तो तुम चाहोगे तो दुनिया को फतह कर लोगे कभी कभी लोकतंत्र में ऐसा भी होता है ,इस लिए हिम्मत करो क्यूंकि हिम्मते मर्द मदद दे खुदा

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