Wednesday, February 10, 2010

लोकतान्त्रिक भारत की स्थिति

मेरे विचारों में भारत में लोकतंत्र की स्थिति बहुत खराब है क्योंकि देश के किसी भी सेक्टर में लोकतंत्र के अनुरूप कार्य नहीं हो रहे यद्यपि देखने और सुनने में प्रितिदीन यही आ रहा है और अखबार भी दहाड़ मार रहे है की यदि कहीं लोकतंत्र है तो वो केवल भारत में है जब की वास्तविकता एक दम इसके विपरीत है ,मेरे विचारों में तो भारत में लोकतंत्र नाम का भी कहीं पर नामोनिशान नहीं है जहां पर ना न्याय है ना नैतिकता है ,और ना ही अधिकार है यदि अधिकार है भी तो लगातार उनका हनन हो रहा है ,सत्यता का तो नामोनिशान ही नहीं है ,कर्तव्य का पालन कोई भी नहीं कर रहा ,भर्ष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है ,ष्णयंत्र सभी जगह व्याप्त है लोकतंत्र को किर्यान्वित करने वाले ,और लोकतंत्र के रक्षक ही भक्षक बने हुए है ,राजनेता राज के चक्कर में ,और नेता नेत्रत्व के चक्कर में लगे रहते है ,कानूनी प्रकिर्या दिन प्रितिदीन दुरूह और महँगी होती जा रही है ,प्रधानमन्त्री और मंत्री बल्कि हमारे देश के उच्च शिखर पर आसीन कोई भी पदाधिकारी आम आदमी की तो क्या अच्छे नागरिको से मिलने या उनकी सुनने तक को तैयार नहीं है ख़त लिख लिख कर तुम बड़े हो जाओगे पर आपको मिलने का समय नहीं मिल सकता ,कभी कभी तो लगता है की हम शायद शिक्षित ही नहीं हैं या भारत के वासियों को प्रधानमंत्री या मंत्रियों के कार्यालयों का ही पता नहीं है ,
यदि लोकतंत्र को जीवित रखना है तो हर गरीब और आमिर आदमी को न्याय मिलना चाहिए नाकि गुंडे और मवालियों को पर देखने में आता है की गुंडे और मव्वाली नाजाने कैसे कैसे जुगाड़ करके न्याय पा लेते है और शरीफ आदमी न्याय के लिए रगड़ता रहता पर उसे न्याय नहीं मिल पाटा और एक दिन वो आदमी न्याय की आस लिए या तो भगवान् को प्यारा हो जाता अथवा भिखारी बनकर किसी चौक पर बैठकर भीख माँगता है न्यायिक प्रणाली प्रकिर्या इतनी लम्बी और खर्चीली है की गरीब आदमी लोकतंत्र में न्याय पा ही नहीं सकता

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