Wednesday, April 7, 2010
भारत के लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका
हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका की गरिमा में दिन प्रितिदीन कमी आती जा रही है है ,भ्रष्टाचार इतना बाद चुका है की देश के हर आदमी की जुबान प़र एक ही बात है कि मुकद्दमे बाजी से बाज आना क्योंकि वहाँ कोई भी काम बिना पैसे के नहीं होता ,पैसा दो और फैसले कराओ ,जो पैसा देगा उसी पक्ष में फैसला हो जाएगा ,बहुत से वकील लोग ऐसी ही दलाली का काम अधिक और केस कम लड़ते है ,वैसे तो ५० %का काम दलाली है प्रक्टिस तो उनको करनी आती नहीं ,हर साल किसी ना किसी बड़े जज कानाम भ्रष्टाचार में लिप्त होकर न्यूज़ पपर्स में ,टी,वी, में आ जाता है आज यदि धूम मची है तो वो हैं चीफ जस्टिस दिनाकरन जी जो कि कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस है ,अब आप खुद सोचिये कि जिस जज कि जिम्मेदारी सम्पूर्ण कर्नाटक हाई कोर्ट को चलाना है या निगाह रखनी है ,और वो ही आय से ज्यादा धन ,लैंड स्केम्म .गरीबों कि रोजी रोटी छीनने और उनकी खाली जमीनों को हथियाने ,और ना जाने कितने ही भर्ष्टाचार में लिप्त है तो देश के लोकतंत्र कि रक्षा कैसे करेगा और ऊपर से कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं अब उनकी कुर्सी भी छुडवाने के लिए शायद पार्लिआमेंट का ही सहारा लेना पड़े ,और यदि हम उनके चेहरे मोहरे को देखते हैं तो वो बड़ी बेशर्मी के साथ अकड में बैठे नजर आते हैं अत; सरकार को ऐसा क़ानून बनाना चाहिए कि हाई कोर्ट का कोई भी जज भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो उसे तुरंत ही कुर्सी से हटाया जाना चाहिए और उसकी सम्पूर्ण संपत्ति कुर्क कर लेनी चाहिए तुरंत ही ,ताकि दुसरे जज भी उससे कुछ सिक्षा ले सकें ,वैसे तो हमारे देश का भगवान् ही मालिक है,,कम से हर गरीब और मालदार आदमी को न्याय तो मिलना चाहिए प़र यदि इसी तरह के काण्ड होते रहे और ऐसे ही चलता तो शायद वो दिन दूर नहीं जब प्रत्येक भारत वासी का विश्वाश न्याय पालिका से उठ जाएगा ,
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