जी हाँ ठोकर एक ऐसा नाम है जो जीवन में लगभग प्रत्येक व्यक्ति को लगती है चाहे वो कितना ही बड़ा विद्वान ,राजनितिक चाणक्य ,सत्यवादी ,महात्मा या एक साधारण व्यक्ति ही क्योँ न हो ,पर कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो एक बार ठोकर खाने के बाद संभल जाते हैं और आग ेभविष्य में इतने अच्छे तरीके से रहते ,चलते या घुमते हुए या कुछ भी करते हुए चाहे कोई भी क्षेत्र क्योँ न हो उसमे ठोकर खाने से बच जाते हैं ,जैसे की ४९ दिन की सरकार को छोड़कर केजरीवाल जी का चले जाना ,अस्मित की खातिर ही सही, पर एक ठोकर तो खाई ,परन्तु अपनी उस गलती का सुधार ठीक एक वर्ष बाद पूर्णत: कर लिया और उस ठोकर से निजात पाई ,
परन्तु वहीँ दूसरी ओर हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं हैं जो कि अपने असत्य भाषणों के कारण दिल्ली के असेम्ब्ली चुनावों में बुरी तरह से हार कर ओर अपनी बनी बनाई इज्जत को बुरी तरह से बिगाड़कर ,देश भर कि जनता कि आँखों कि किरकिरी होने के बावजूद भी अपना वो ही पुराना ढर्रा ,यानी कि बड़ी बाते करना झूठी बातों के बल पर अपने भाषणों का समा बांधना ,जनता को झूठे और ना होने वाले वायदे कर कर के उनके वोट को अपने पक्षों में कर लेना जिसके कारण उनको केंद्र में प्रधानमंत्री कि कुर्सी मिल गई ,परन्तु देश कि जनता उस वक्त दिए हुए प्रलोभनों को समझ नहीं पाई और उनकी सरकार बन गई परन्तु दिल्ली कि जनता ने जो कुछ पिछले ९ माह में जो देखा तो उससे उनका मोदी प्रेम दूर हो गया ,क्योँकि झूठ कि भी एक सीमा होती है जिसके कारण उनका नाम फेंकू तक पद गया उसे देखकर दिल्ली विधान सभा में अपना सही फैसला सूना दिया और भाजपा को जड़ से ही उखाड़ फेंका जिसके कारण उनको ७० में से मात्र ३ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा ,
कहने का तातपर्य ये है कि इतनी बड़ी ठोकर खाने के बाद भी मोदी जी ने कोई सबक नहीं लिया बल्कि उसके ठीक सदृश्य ही ,दिल्ली में आम आदमी कि सरकार बनने के बाद काम करना शुरू कर दिया चाहे वो बिजली का मुद्दा हो या पानी का या रेवेन्यू का ,उन पर भाषण देना शुरू कर दिया ताकि जनता में ऐसा संदेश जाए कि बिना मोदी जी कि सहायता के केजरीवाल जी कुछ भी दिल्ली के लिए नहीं कर सकते ,|
एक कहावत है कि चोर चोरी से जाए पर हेराफेरी से नहीं "इस बात को मोदी जी ने सिद्ध कर दिया ,और एक कहावत और भी है कि जो व्यक्ति ठोकर खाकर भी नहीं सँभलता,उसको लोग क्या कहते हैं ,कम से कम मैं तो कुछ नहीं कह सकता ,
मेरी राय आदरणीय मोदी साहब से यही है कि यदि वो भाजपा को बचाना या और भी प्रदेशों में सरकार बनाना चाहते हैं तो आप अपना यह रूप छोड़ कर एक सत्यभाषी के रूप में अवतरित हों और बदला लेने या अन्य किसी कि सरकार गिराने का स्वप्न देखना छोड़ दें तो अच्छा है वार्ना ये जनता ५ साल तो सहन कर लेगी पर फिर आपकी भी कांग्रेस जैसी हालत हो जाएगी ,और अगले चुनावों में जीत देखना बंद कर दीजिये |
इसे कहते हैं देर से आये पर दुरुस्त आये "
परन्तु वहीँ दूसरी ओर हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं हैं जो कि अपने असत्य भाषणों के कारण दिल्ली के असेम्ब्ली चुनावों में बुरी तरह से हार कर ओर अपनी बनी बनाई इज्जत को बुरी तरह से बिगाड़कर ,देश भर कि जनता कि आँखों कि किरकिरी होने के बावजूद भी अपना वो ही पुराना ढर्रा ,यानी कि बड़ी बाते करना झूठी बातों के बल पर अपने भाषणों का समा बांधना ,जनता को झूठे और ना होने वाले वायदे कर कर के उनके वोट को अपने पक्षों में कर लेना जिसके कारण उनको केंद्र में प्रधानमंत्री कि कुर्सी मिल गई ,परन्तु देश कि जनता उस वक्त दिए हुए प्रलोभनों को समझ नहीं पाई और उनकी सरकार बन गई परन्तु दिल्ली कि जनता ने जो कुछ पिछले ९ माह में जो देखा तो उससे उनका मोदी प्रेम दूर हो गया ,क्योँकि झूठ कि भी एक सीमा होती है जिसके कारण उनका नाम फेंकू तक पद गया उसे देखकर दिल्ली विधान सभा में अपना सही फैसला सूना दिया और भाजपा को जड़ से ही उखाड़ फेंका जिसके कारण उनको ७० में से मात्र ३ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा ,
कहने का तातपर्य ये है कि इतनी बड़ी ठोकर खाने के बाद भी मोदी जी ने कोई सबक नहीं लिया बल्कि उसके ठीक सदृश्य ही ,दिल्ली में आम आदमी कि सरकार बनने के बाद काम करना शुरू कर दिया चाहे वो बिजली का मुद्दा हो या पानी का या रेवेन्यू का ,उन पर भाषण देना शुरू कर दिया ताकि जनता में ऐसा संदेश जाए कि बिना मोदी जी कि सहायता के केजरीवाल जी कुछ भी दिल्ली के लिए नहीं कर सकते ,|
एक कहावत है कि चोर चोरी से जाए पर हेराफेरी से नहीं "इस बात को मोदी जी ने सिद्ध कर दिया ,और एक कहावत और भी है कि जो व्यक्ति ठोकर खाकर भी नहीं सँभलता,उसको लोग क्या कहते हैं ,कम से कम मैं तो कुछ नहीं कह सकता ,
मेरी राय आदरणीय मोदी साहब से यही है कि यदि वो भाजपा को बचाना या और भी प्रदेशों में सरकार बनाना चाहते हैं तो आप अपना यह रूप छोड़ कर एक सत्यभाषी के रूप में अवतरित हों और बदला लेने या अन्य किसी कि सरकार गिराने का स्वप्न देखना छोड़ दें तो अच्छा है वार्ना ये जनता ५ साल तो सहन कर लेगी पर फिर आपकी भी कांग्रेस जैसी हालत हो जाएगी ,और अगले चुनावों में जीत देखना बंद कर दीजिये |
इसे कहते हैं देर से आये पर दुरुस्त आये "
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