मात्र अन्न से जिनका मन तृप्त हो जाता हो ,
वस्त्रों से जिनका तन सौंदर्यमय हो जाता है,
देशाटन से जिनका मोहपास हट जाता हो
धन से जिनका धर्म भ्र्ष्ट हो जाता हो
जीवन भर मान सम्मान की इच्छा बनी रहती हो
ऐसे चाणक्या भला अब इस संसार में कहाँ
वस्त्रों से जिनका तन सौंदर्यमय हो जाता है,
देशाटन से जिनका मोहपास हट जाता हो
धन से जिनका धर्म भ्र्ष्ट हो जाता हो
जीवन भर मान सम्मान की इच्छा बनी रहती हो
ऐसे चाणक्या भला अब इस संसार में कहाँ
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