पिछले कुछ दिनों से,
जितनी भीड़ मयखानों में है
उतनी भीड़ दावतखानों में नहीं
शायद जरूरत है गम भुलाने की
उतनी चिंता रोटी खाने की नहीं |
मोदी राज ने कुछ दिया तो नहीं
पर बचा कुचा शकुन भी छीन लिया
नित नए स्वांग रचे जा रहे हैं
शांति का कहीं नामों निशाँ नहीं |
अब तो बेगैरत हो गए हैं हम
संस्कारों का तो नामो निशाँ नहीं
मुंह में जो भी आया बक देते हैं
इंसानियत से कोई सरोकार नहीं |
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