प्रवृति
प्रत्येक व्यक्ति में देवता प्रवृति और राक्षस परवर्ती का वास होता है ,जब तक उसकी बुद्धि भ्र्ष्ट नही होती यानी उस पर सांसारिकता की पर्त नहीं चढ़ती तब तक वो व्यक्ति देवतास्वरूप काम करता है ,और जैसे ही बुद्धि भ्र्ष्ट होती है तो वो राक्षसी परवर्ती में चला जाता है और वो मुख्यतया वो राक्षसों जैसे ही उलटे ,टेड़े कार्य करने लगता है ठीक उसी प्रकार के कार्य जैसे की वर्तमान में हो रहे हैं |
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