Monday, March 16, 2009

लोकतंत्र के रक्षक हैं या ?

एक बहुरूपिया
धूर्त बेईमान
असभ्य ,क्रूर
सभ्य नागरिक की भाषा में
अपने दुर्गुणों का बखान
सदगुणों में प्रवर्त कर
त्यागियौं जैसा बोध
जनता जनार्दन पर
अभिमंत्रित कर रहा है ,
शासन करने हेतु
अपने लक्ष्य को
मीन की नैन बना
तन से श्याम
मन से कलुषित
इच्छाओं में सर्वोपरि
खाने के दांतों को
मुख में छिपा
दिखाने के दांतों से
हंस -हंस कर
श्वेत हाथी बना
दया की भीख मांग
जनता जनार्दन से
अधिकार छीनने के
प्रयत्न कर रहा है

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