Wednesday, April 8, 2009
लोकतंत्र की रक्षा करनी है तो
८० से ८३ ,८५ ,या ९० वर्ष की आयु ,कानो से भली प्रकार सुनाई ना देना ,याददास्त का कमजोर हो जाना ,गले से आवाज का ना निकलना ,नाक से स्वांस लेने में परेशानी ,आंखों पर ३० नंबर का चश्मा चढ़ा हुआ ,हर्दय की बाई पास सर्जरी ,एक किडनी ख़राब ,गैस प्रोब्लम ,घुटनों सहित शरीर के सभी जोडो में दर्द ,चलने फिरने में परेशानी या फ़िर वील चेयर का इस्तेमाल क्या इतनी सारी बिमारियों को सांसद बन्ने के लिए टिकिट दे देना और कहना की अब तुम क्षेत्र में जाकर काम करो क्या ये बीमारियाँ क्षेत्र की जनता की कोई सहायता कर सकती हैं ,जो स्वयम के शरीर को खींच नहीं सकती वो भला क्या तो जनता का भला करेंगी और क्या लोकतंत्र को बचाने में कामयाब हो सकेंगी ,आज के चुनावों में ही नहीं बल्कि पहले भी हमारे देश की सभी पार्टियां इन बिमारियों को सांसद ,विधायक या अन्य जनसेवकों का टिकिट देकर चुनाव लडाती रहीं है है ,और अक्सर देखा गया है की इनमे से कुछ तो अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाते और बीच में ही भगवान् जी को प्यारे हो जाते हैं जिससे देश में एक दिन के कार्य का हर्जाना भी होता है ,और कुछ सांसद बनते ही अमेरिका ,इंग्लॅण्ड अपना इलाज कराने भाग जाते हैं जिसमे की गरीबों की खून पसीने की कमाई काफ़ी पैसा इनके इलाज पर बरबाद होता है और ये मजे से अपने शरीर के बेकार अंग बदलवाकर वापिस आ जाते है और यदि कोई पत्रकार इनके बारे में पूछ ले तो कहते हैं की इनके पास जीवन भर का तजुर्बा है ,अब तजुर्बा क्या करेगा जब शरीर ही स्वस्थ नही है ,और सब जानते हैं की स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग रहता है ,तो भाई हमारी देश की सभी पार्टियों से करबद्ध प्रार्थना है की वो यदि वास्तव में लोकतंत्र की रक्षा करना चाहते हैं तो भविष्य में युवा और अधेढ़ प्रत्यासियों को ही टिकिट दे तभी लोकतंत्र बच पायेगा ,क्यों की देश को चलाने की जिम्मेदारी इन्हीं के सिरों पर है ,क्या १३० करोड़ की आबादी में ५४५ सांसद नही मिलेंगे
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3 comments:
सटीक कहा है ... लोकतंत्र की रक्षा युवा ही कर सकते हें।
शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्!
(शरीर ही सभी धर्मों का साधन है)
लोकतंत्र की रक्षा युवा ही कर सकते हें।
लेकिन बुजुर्गों के निर्देशन में फिर ठीक होगा
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