आज सभी जानते हैं कि न्याय पालिका भ्रष्टाचार से कंठ तक डूबा है ,और पहली बात तो ये है कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय से न्याय पाने कि गुहार लगाना भी किसी गरीब आदमी के बस कि बात नहीं है क्योंकि बिना वकीलों के वहाँ केस लड़े नहीं जाते और जिन केसों का सही फेसला करवाना हो तो उन केसेस के लिए सीनियर वकील रखे जाते हैं और उनकी फीस देना गरीब के बसकी बात नहीं ,इसलिए वो लोग नीचे के कोर्ट में ही हार कर बैठ जाते हैं ,और ऊपर जाने के नाम ही नहीं लेते ,उन सीनियर वकीलों से तो बात तक करने ,या केस समझाने के लिए ही छोटा वकील करना जरूरी है जिसकी फीस भी लाखों में होती है ,उसके बाद सीनियर वकील कि फीस जो प्रति तारीख के हिसाब से होती है ,और फिर भ्रष्टाचार कि रकम अलग से ,अब सोचिये इतना करने के लिए तो गरीब आदमी को अपना मकान दूकान के साथ बच्चे तक बेचने पद सकते हैं और फिर भी न्याय मिले या ना मिले ,तो इन सभी के लिए और लोकतंत्र कि रक्षा के लिए सरकार को कुछ कार्य तो करने ही पड़ेंगे
सबसे पहले तो न्याय मांगने वाले गरीब आदमी को सरकारी सीनियर और इमानदार वकील बहुत कम फीस प़र नियुक्त कराना चाहिए
उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के जजों कि नियुक्ति ,प्रशासनिक अधिकारियों कि भाँती डाइरेक्ट होनी चाहिए किसी भी वकील को प्रक्टिस के आधार प़र जज नहीं बनाना चाहिए ,असली बिमारी कि जड़ यहीं से है
किसी भी कोर्ट का जज अलग जोंन का होनाचाहिए जैसे कि नोर्थ में साउथ का और साउथ में नोर्थ का या एनी किसी जोंन का
किसी भी जज का बाई बंधू बेटा रिश्तेदार उस कोर्ट में प्रक्टिस नहीं करता हो ,ऐसा भी देखने में आया है कि जजों के रिश्तेदार आदि उच्च न्यायालय आदि में प्रक्टिस करते हैं और सभी तरह के जुगाड़ वो कर लेते हैं
सभी कोर्ट्स के अन्दर सी ,सी, टी वी, ,और रिकार्डिंग का पूर्ण प्रबंध होना चाहिए ,
सभी कोर्ट्स में वकालत करने कि मुख्य भाषा मात्र भाषा हिंदी या जो भी राज्य कि भाषा हो ,होनी चाहिए ताकि वकीलों और जज कि गुफ्तगू को सभी लोग और न्याय मांगने वाला भी समझ सके ,अक्सर कम पढ़ा लिखा वक्ती तो कोर्ट कि भाषा ही नहीं जान पाटा
हर व्यक्ति को अपना केस खुद लड़ने कि परमिसन मिलनी चाहिए ताकि वो अपनी परेशानी सही प्रकार से जज महोदय को समझा सके ,जिस तरह कि लोक अदालते फैसले करती हैं और सरकार ने भी एक मिदिएशन सेंटर स्थापित किये हैं जो काफी सफल हैं ,प़र वो अभी किरिमिनल केस में है इसी तरह सिविल कासीस में भी होना चाहिए
जजों को सरकार ने काफी पावर्स ,अधिकार दे रखे हैं प़र वो जो भी फैसले देते है वो सभी लक्जीर के फ़कीर के तरह ही होते है
झूठ और सच को परखने के लिए सभी कोर्ट्स में मौका मुआना करने के लिए कमिश्नर नियुक्त होने चाहिए क्योंकि बंद कमरे में बैठ कर न्याय करने में दिक्कते आती ही हैं झूठ और सत्य का सही फैसला नहीं हो पाटा
वकीलों और जजों के मिलने जुलने या पार्टी आदियों में वकीलों के द्वारा जजों को आमंत्रित करने प़र रोक होनी चाहिए ,होली दिवाली के प्रचलन से भी जजों को दूर रहने के निर्देश होने चाहिए
उच्च और उच्चतम न्यायालय के जजों को इतने भी अधिकार नहीं दिए जाने चाहिए ताकि वो जज दिनाकरन जी कि भाँती का व्यवहार करने लगे यदि वो राष्ट्र पति के द्वारा नियुक्त हैं तो राष्ट्रपति को उनके हटाने के लिए भी सवतंत्रता होनी चाहिए ,वरना वो तो बेलगाम कि भाँती व्यवहार करेंगे ही
यदि कोई जज भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो उसकी नियुक्ति तुरंत समाप्त होनी चाहिए ,और ये अधिकार लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों को भी होने चाहिए क्योंकि लोकतंत्र कि रक्षा और सरकार को भर्ष्टाचार से मुक्त रखकर चलाने कि जिम्मेदारी भी प्रधानमन्त्री और सभी सांसदों कि होती है
जजों को अपनी आय व्यय का ब्यौरा हर वर्ष कोर्ट के साथ साथ संसद में भी पेश करना चाहिए ,ताकि जनता जान सके कि हमारे फैसले करने वाले कितने पारदर्शी हैं
जजों को प्रितिदीन के हिसाब से कुछकेसेस फिक्स कर देने चाहिए कम से का २ या ३ केसेस तो रोजाना करने ही चाहिए प़र हमारे यहाँ कोर्ट्स में शायद ही कोई जज प़र डे १ केस भी नहीं करता जिसके कारण केसेस का हर कोर्ट में अम्बार लगा है क्योंकि वो तारीख के अलावा कूच भी तो नहीं देते
जजों को निर्देश दिए जाने चाहिए कि वो वकीलों कि फेस वेल्यु के हिसाब से फैसले ना करके उनकी काबलियत और और पतिश्नर के दोकुमेंट्स और परिस्तिथियों और साक्षों के आधार प़र ही फैसले करे
जजों को ये भी बताया जाय और महसूस कराया जाए कि आप कोर्ट में भगवान् का सवरूप हैं सभी लोग आपको भगववान कि तरह मानकर आपके आदेशों का पालन करते हैं
जजों को चाहिए कि सिविल केसेस में ख़ास तोर प़र भूमि ,मकान ,दूकान आदि में बिना ओरिगिनल कागज़ देखे किसी को भी स्टे ऑर्डर ,या स्टेतस को ,ना दिया जाय ,क्योंकि आज देखा जा रहा है कि कोई भी बेईमान आदमी कोर्ट में जाकर बिना सच्चे कागजो के ,केवल फोटो कापी के बल प़र ही जुगाड़ करके स्टे ऑर्डर या स्टे तस को , ले आता है और शरीफ आदमी फंस जाता है तब तक के लिए वो मकान भूमि या दूकान किसी काम के नहीं रहते ,किरायेदार तक भी ऐसा ही करते हैं और २० से २५ वर्ष तक खिंच लेते है और बिना मतलब के कानूनी प्रकिर्या शुरू हो जाती है और फिर वो बेईमान आदमी तरह तरह से अधिक परेशान करता है
४ ,४ महीने कि बजाय थोड़ी जल्दी कि तारीखें दी जाए इतने समय में तो आदमी केस कि सारी कहानी ही भूल जाता है और अगली तारीख के लिए उसे फिर म्हणत करनी पड़ती है
Saturday, April 24, 2010
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4 comments:
आसान है क्या न्यायपालिका को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना? हम जन संख्या के हिसाब से अदालतें तो स्थापित कर नहीं सकते। जरूरत की चौथाई भी नहीं हैं देश में। ऐसी हालत में मुकदमे को सुनवाई पर लगवाने के लिए पैसा देने को मुवक्किल तैयार बैठा रहता है। पूरी व्यवस्था ही बदलनी होगी।
कौन करवायेगा. जज या वकील या नेता या अफसर या आम आदमी जिसके पास कुछ भी नहीं लुटने के सिवा...
यदि हालात गंभीर हैं और समस्या का हल निकालना और भी मुश्किल हो तो फ़िर सिरे से ही शुरू करना होता है । ऐसा ही कुछ न्यायपालिका के लिए भी है , जैसा कि दिनेश जी ने कह ही दिया है कि पूरी व्यवस्था ही बदलनी होगी , और इसके लिए एक दूरदर्शी योजना बनाने की जरूरत है , मगर करेगा कौन सरकार तो फ़ोन टैपिंग , आईपीएल जैसे जरूरी मुद्दों में उलझी हुई है
अच्छा लिखा है, साधुवाद एवं शुभकामनाएँ!
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जिन्दा लोगों की तलाश!
आपको उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की इस तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को हो सकता है कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आपको उक्त टिप्पणी प्रासंगिक लगे या न लगे, लेकिन हमारा आग्रह है कि बूंद से सागर की राह में आपको सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी आपके अनुमोदन के बाद प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप को सारथी बनना होगा। इच्छा आपकी, आग्रह हमारा है। हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी जिनमें हो, क्योंकि भगत ने यही नासमझी की थी, जिसका दुःख आने वाली पढियों को सदैव सताता रहेगा। हमें सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह और चन्द्र शेखर आजाद जैसे आजादी के दीवानों की भांति आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने वाले जिन्दादिल लोगों की तलाश है। आपको सहयोग केवल इतना भी मिल सके कि यह टिप्पणी आपके ब्लॉग पर प्रदर्शित होती रहे तो कम नहीं होगा। आशा है कि आप उचित निर्णय लेंगे।
समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है, बल्कि हो ही चुका है। सरकार द्वारा जनता से हजारों तरीकों से टेक्स (कर) वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया गया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा लोगों से पूछना चाहता हँू कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरों द्वारा सत्ता मनमाना दुरुपयोग करना और कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666, E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
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