उपरोक्त सभी राजनीतिज्ञों ,का पद और कार्य बहुत बड़ा और कार्य बहुत अधिक होता है इस लिए ये बहुत व्यस्त होते हैं ,तो सम्पूर्ण कार्य स्वयम तो कर नहीं सकते ,अपने अपने विभागों के अलावा ,अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के काम और उनकी सेवा ,उसके अलावा देश कि जनता कि सेवा ,बहुत से काम इनको करने पड़ते हैं और ये भी एक सत्य है कि इतने सारे काम ये चाहकर भी नहीं कर सकते ,तो इसके लिए सरकार ने इनकी हेल्प के लिए २ से ५ प्रशासनिक सेवा के ब्युरेक्रेट,यानी कि वो आई ऐ ,एस ,या अई ,आर, एस ,अथवा आई ,पी ,एस,रेंक के होते हैं ,और उनमे से ही सेक्रेटरी,जाइंट सेक्रेट्री ,और प्रिंसिपल सेक्रेट्री ,नियुक्त होते है ,सम्पूर्ण विभाग का कामकाज देखना इन्हीं ऑफिसर्स का काम होता है क्योंकि राज्यपाल ,मुख्यमंत्री ,या मंत्रियों के पास तो समय ही नहीं होता कहने का तात्पर्य है कि सभी महत्त्वपूर्ण विभागों को ये ही देखते हैं वैसे भी सरकार ये ही चलाते है ,बाकी सबका तो केवल नाम ही होता है
अब आप इनका कार्य और कार्य करने का तरीका देखिये ,इनके पास प्रितिदीन हजारों कि तादाद में पत्र आते हैं ,और सेकड़ों कि तादाद में जनता जनार्दन कम और छुटभैये नेता बहुत आते हैं जिनका मुख्य कार्य होता है पैसे खा पीकर जनता जनार्दनका,अथवा अपना भी, प्रत्येक काम चाहे वो सही हो अथवा गलत ,इनसे जबरदस्ती और ऊपर से प्रेस्सर डलवाकर ,मंत्री से लेकर प्राधानमंत्री या राष्ट्रपति तक का हवाला देकर या अंतिम हथियार उनके सामने रो धोकर ,पैरों में पड़कर या मिमियाकर ,जैसे भी हो ये एकतरफा काम करा लेते हैं ,या इनसे किसी भी विभाग के लिए काम करवाने के लिए विभाग के लेत्तर हेड प़र सिफारिशी पत्र ले लेते हैं ,उस पत्र को देखते ही सम्बंधित विभाग ,गलत सलत कैसे ही कार्य को सही कर देता है ,इन पत्रों का दुखद पहलू देखिये ,
ये सभी सिफारिशी पत्र बिना दूसरी पार्टी को बुलाये या पूछे बगेर ,एकतरफा दिए जाते है जिनका दुष्परिणाम होता है कि इसमें ९०%शरीफ और इमानदार ,अराज्नेतिक लोग मर जाते है ,जिसमे ये नेता लोग उन पत्रों के सहारे कितने ही लोगों की प्रापर्टी तक दिल्ली विकाश प्राधिकरण ,एम् सी दी ,वक्फ बोर्ड कि अथवा दिल्ली सरकार तक कि जमीनों को भी हथिया लेते हैं ,और ना जाने कितने मासूमों को जेल में भेज कर चक्की तक पिसवा देते हैं और कई बार इन केशों के बारे में विभाग के मंत्रियों तक को पता नहीं होता जब कि दस्तखत सभी पत्रों प़र मंत्रियों के ही होते हैं प़र पत्र इतने होते हैं कि मंत्री जी तो उतने पत्र देख भी नहीं पाते होंगे ,
और ये छुटभैये ,नेता ,अथवा बदमाश लोग (जो इसी प्रकार के )कार्य निजी लाइजन वर्क के लिए भी करते हैं ,उस एक पत्र का रेफरेंस अपने प्रतेक पत्र में देकर ,अपने प्रत्येक पत्र के ऊपर लिखते हैं फला मंत्री जी ,या एल ,जी ,अथवा एम् ,एल ,ऐ ,या सांसद रेफरेंस ,और जहां भी जाते हैं वहाँ सबसे पहले इनके पत्र को ही दिखाते हैं जिससे कि पत्र देने वालों कि छवि तो खराब होती ही है क्योंकि इनके गलत काम को करने वाले तो यही सोचते होंगे कि कहीं इस गड़बड़ घोटाले में ऊपर वालों का साझा भी होगा ,ये लोग वैसे भी ऊपर वालों से अपने सम्बन्ध अच्छे होने कि शेखी बघारते हैं
मजे कि बात ये है कि जब उसी काम को कराने के लिए वो आदमी खुद पहुंचता है और अपने साथ हुए धोखे कि कहानी और छुटभैये कि बेईमानी कि कहानी सुनाता है तो उनको लगता है कि काम गलत हो गया ये फिर उस आदमी को भी पत्र दे देते हैं ,जब उस पत्र को लेकर आदमी सम्बंधित विभाग के पास जाता है तो वो ये कहकर ताल देते हैं कि हम तो ये काम पहले कर चुके ,हमें क्या पता कि वो गलत था या सही ,प़र कोई तत्व नहीं निकलता और ये पत्र एक आदमी कि जीवन भर कि जमा पूँजी को खा जाता है ,
तो आदरणीय सरकार को चालकाने वालो आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि यदि आपको पत्र इस्सू करने का इतना ही शौक है या तुम्हारी मजबूरी बभी है तो कम से कम दूसरों के अधिकारों का हनन ,या किसी शरीफ को म्रत्यु लोक तो मत भेजो ,कम से कम पत्र इस्सू करने से पहले एक बार दूसरी पार्टी से भी ,बुलाकर पूछो कि भाई तुम क्या चाहते हो अथवा सामने वाला आदमी सही है या गलत ,
यदि भविष्य में ऐसा नहीं होता तो ये सब लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होगा और भारत में लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाएगा
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