Friday, August 6, 2010

दिल्ली पुलिश नंब,१,भ्रष्टाचार में, लोकतंत्र का मजाक

कुछ कहावतें पुलिस के बारे में जनता में प्रचलित हैं ,
यदि किसी पुलिश वाले से कहो कि भैया मेरी ऊँगली कट गई है ,ज़रा इसं पे मूत (पेशाब करना )दे तो भाई बिना पैसे के वो मूतेगा नहीं ,
भैया पुलिश वालों से ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी ,
ये तो बिना पैसे लिए अपने बाप को भी ना छोड़ते है ,
अरे किसी पुलिश वाले कि औलाद आज तक अच्छी देखीहै क्या ,
यदि रास्ते में सांप और पुलिस वाला मिल जाए तो भाई सांप को गले में डालकर पुलिश वाले को छोड़कर भाग लो ,
अरे पुलिश वालों से तो पंडित भी अच्छे हैं ,क्योंकि वो तो शादी ,ब्याह ,म्रत्यु भोज में ही खाते हैं ,प़र पुलिश वाले तो ,चोरी चकोरी लूट खसोट ,डकेती ,दान दहेज़ ,एक्सीडेंट ,अचानक मौत ,बच्चा हो या जवान ,लड़की हो या जवान ओरत ,दुखियारी हो या भिखारन ,कहीं भी खाने नहीं चूकते ,और तो और पोस्टमार्टम कि रिपोर्ट भी बिना खाए नहीं देते ,
और भी ना जाने कितनी ही कहावतें पुलिस के बारे में जनता में प्रचलित हैं ,जैसे कि पुलिश से घटिया कौम शायद कोई और होगी ,
कहने का तात्पर्य है कि इनसे तो भगवान् भी नहीं बचा सकता ,
अब कुछ हकीकतें देखिये ,आखिर क्यों हैं ये नंबर १
बिना पैसे के कोई भी ऍफ़ ,आई आर लिखी नहीं जा सकती ,जब तक आप पैसे नहीं दोगे पुलिस वाले आले बाले गाते रहेंगे ,
आपकी कार चोरी हो कर जब तक दिल्ली से बाहर नहीं चली जायेगी तब तक ये कोई रिपोर्ट नहीं लिखेंगे ,
पैसे देकर दिल्ली के किसी भी शरीफ आदमी को चोर डाकू बनव्वा लीजिए ,
यदि आपके मकान प़र कोई कब्जा कर ले तो ये उस आदमी से पैसे लेकर उसे मालिक बना देंगे ,और प्रापर्टी विवाद बना देंगे क्योंकि उसमे ये किसी को भी अरेस्ट नहीं कर सकते ,दिल्ली में प्रापर्टी विवादों के जितने भी झगडे कोर्ट्स आदि में चल रहे उनमे लगभग सभी में दिल्ली पुलिश कि दखलंदाजी है ,
भाइयों के प्रापर्टी विवाद को क्रिमिनल केस बनवा देंगे ,चाहे दस्तखत के लिए ऍफ़ एस एल कि रिपोर्ट भी बदलवा देंगे ,बस पैसे खर्च करो ,
केसेस में जितने मोटे पैसे खर्च करोगे उतनी ही बड़ी धारा लगा देंगे ,३०२ ,३०४ ,३०७ ,३०४ ऐ ,३०४ बी ,४२० ,१२०बी ,३६८ ,३७१ ,यानी कहने का तात्पर्य है पैसे देकर कुछ भी करवा लो ,
केस को हल्का भारी कराना सब आई ओ साहब के ऊपर है ,
डिस्क्लोजर रिपोर्ट ,चार्जशीट ,चाहे जितनी टेडी सीधी बनवा लो ,
दहेज़ के कसेस में कितनों को अन्दर बाहर करवाना है ,
बेल दिलवानी ना दिलवानी सब इनके हाथ में है यदि बेल दिलवानी है तो पैसे लेकर रिपोर्ट अच्छी बना देंगे और नहीं बेल करवानी तो रिपोर्ट को ऐसी बना देंगे कि जज तो क्या चीएफ़ जज भी बेल ना दे सके ,
गरीब आदमी तो इनके पासन्याय मांगने जाएगा तो मार और झिडकी ही खायेगा या फिर उसी पे उलटा मुकद्दमा दायर करवा कर अन्दर भेज दंगे
दिल्ली में कौन नहीं जानता कि थानों कि भी बोली लगाईं जाती है ,सभी थानों के रेट मुकर्र हैं ,इनका एस एच ,ओ वो ही बनता है जो सबसे ज्यादा पैसा देता है
कितने ही बार तो इमानदार पुलिश वाले अपने उच्च अधिकारियों की जरूरते पूरी करते करते इतने दुखी हो जाते हैं कि आत्महत्या तक कर लेते हैं क्योंकि ये लोग उसको चेन तो लेने नहीं देते ,
अभी अभी एक इन्स्पेक्टर ने खुद स्वीकारा है कि मेरे पास बचा क्या है सारी कि सारी रकम जो पिछले वर्षों में कमाई उसे तो ऊच्च अधिकारी खा गए ,दरअसल इस महकमे में अंदरूनी भ्रष्टाचार भी बहुत है ,
ई ,ओ, डब्लू में पोस्टिंग होना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि वहाँ तो बर्शात होती है ,सभी बहती गंगा में खूब हाथ धोते हैं ,
वास्तविकता तो ये है कि नंबर १ का होना लोकतंत्र के मुंह प़र एक काला टीका है ,बदनुमा दाग है ।
यदि loktantr को जीवित रखना है तो रक्षक को भक्षक बानने से रोकना होगा





2 comments:

Rajeev Bharol said...

कभी कभी यह सब देख कर मैं सोचता हूँ की अंग्रेज क्यों भारत छोड़ कर चले गए.

आज़ादी हमें रास नहीं आई.

परमजीत सिहँ बाली said...

बात तो सही है लेकिन इस की असली जड़ कहीं ओर है.....आखिर ये ऐसे क्यों होते हैं ....