Tuesday, November 3, 2015

ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ कोई सुखी ही नहीं है ,

सड़क पर चलते
प्रत्येक प्राणी को
गौर से देखने पर
आँखों में गड्ढे
काले काले निशान
कपोलों पर झुर्रियां
चिंताओं में लीन
कोई पैदल
तो कोई साइकिल पर
कोई स्कूटर या बस में
कोई कार में
सबके चेहरे एक से नजर आते हैं ,
कोई सरकारं से पीड़ित
कोई समाज से दुखी
कोई परिवार से तिरस्कृत
कॉिम भाइयों के छल  से
कोई भार्या के चरित्रं से
कोई धन हेतु
कोई धनाभाव के कारण
सबके मुखमंडल पर
मारकेश के चिन्ह
नजर आते हैं
सबके चेहरे एक से नजर आते हैं ,
ह्रदय में मलिन आत्मा
विषैली मुस्कराहट
छल ,कपट ,राग द्वेषों
से मिश्रितं
सूखी हंसी के फव्वारे
एक दूजे को पागल
बेवकूफी का पहाड़ा पढ़ाते
अपनी कार्य सिद्धि कर
शमशान की और ही
जाते नजर आते हैं
सबके चेहरे एक से नजर आते हैं ,
अर्थी को देते सहारा
कहते हुए बेचारा
जो साथी शमशान जाते हैं
ह्रदय में बसा असंख्य भाव
सबके चेहरे कुछ ना कुछ
विलुप्त होता दर्शाते हैं 
पर वो भाव क्या हैं
शायद शमशान तक की
शव यात्रा का बोध
कराते हैं
सबके चेहरे एक से नजर आते हैं |














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